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नाटक/थिएटर-कला और संस्कृति upsc mains gs paper-1




भारतीय नाटक और थिएटर, अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में, तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

1. शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच

2. क्षेत्रीय रंगमंच

3. आधुनिक रंगमंच


1.शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच

 भारतीय संस्कृति का एक समृद्ध और अनूठा पक्ष है। यह प्राचीन भारत में कला, साहित्य और रंगमंच के अद्वितीय संगम का प्रतीक है। ।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच का आरंभ वैदिक काल में हुआ।

  • इसकी आधारशिला भरत मुनि के नाट्यशास्त्र (200 ई.पू. से 200 ई.) में रखी गई, जिसे रंगमंच का पहला वैज्ञानिक और व्यवस्थित ग्रंथ माना जाता है।

  • नाट्यशास्त्र ने रंगमंच को “पंचम वेद” कहा और इसे मनोरंजन के साथ शिक्षा, धर्म और नैतिकता का माध्यम बताया।

मुख्य विशेषताएँ

अभिनय और प्रदर्शन

  • रस सिद्धांत: नाटक का मुख्य उद्देश्य नवरस (शृंगार, हास्य, करुण, वीर, रौद्र, भयानक, बीभत्स, अद्भुत, शांत) के माध्यम से दर्शकों को आनंदित करना है।

  • अंगिक, वाचिक, आहार्य, और सात्विक अभिनय: नाट्यशास्त्र में अभिनय के ये चार प्रमुख प्रकार बताए गए हैं।

प्रमुख नाटककार और कृतियाँ

  • कालिदास: अभिज्ञान शाकुंतलम्, मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम्

  • भास: स्वप्नवासवदत्ता, प्रतीज्ञायौगंधरायणम्

  • भवभूति: उत्तररामचरितम्, मालतीमाधवम्

  • शूद्रक: मृच्छकटिकम्

विषय-वस्तु

  • नाटक मुख्यतः धार्मिक, पौराणिक, सामाजिक और नैतिक विषयों पर आधारित थे।

  • प्रेम, युद्ध, राजाओं की कहानियाँ, और धार्मिक मूल्यों को प्रमुखता दी गई।

संगीत और नृत्य का प्रयोग

  • संस्कृत नाटक में संगीत और नृत्य अनिवार्य अंग थे।

  • मंच पर वीणा, मृदंग और फ्लूट जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग होता था।

मंच और दर्शक

  • मंचन के लिए विशेष रूप से निर्मित सभागृह या रंगशाला का उपयोग किया जाता था।

  • तीन प्रकार के पात्र होते थे: देवता, मनुष्य और दानव, जिनका अभिनय विशिष्ट वेशभूषा और मुखौटों के साथ किया जाता था।

शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच का उद्देश्य और प्रभाव

  • शिक्षा और नैतिकता: धार्मिक और नैतिक शिक्षा का माध्यम।

  • मनोरंजन: नवरस के जरिए मनोरंजन प्रदान करना।

  • सामाजिक एकता: विभिन्न वर्गों को साथ लाना और एकता स्थापित करना।

  • सांस्कृतिक प्रसार: भारतीय संस्कृति, भाषा और साहित्य को संरक्षित और प्रसारित करना।

पतन और आधुनिक महत्व

  • शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच का पतन मध्यकालीन भारत में विदेशी आक्रमणों, भाषा परिवर्तन और क्षेत्रीय रंगमंच के उदय के कारण हुआ।

  • आज यह रंगमंच भारतीय कला और संस्कृति का अमूल्य धरोहर है।

  • आधुनिक भारतीय रंगमंच शास्त्रीय संस्कृत नाटकों से प्रेरणा लेकर नाटक और थिएटर के नए आयाम विकसित कर रहा है।


2.क्षेत्रीय रंगमंच -

भारत की सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध लोक परंपरा का जीवंत स्वरूप है। यह स्थानीय भाषाओं, लोक कथाओं, धार्मिक मान्यताओं और सामुदायिक परंपराओं को मंच पर प्रस्तुत करता है।

 क्षेत्रीय रंगमंच का परिचय

  • क्षेत्रीय रंगमंच भारत के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में विकसित हुआ और लोक जीवन की अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम बना।

  • इसमें स्थानीय कथाओं, रीति-रिवाजों, और संगीत-नृत्य का समावेश होता है।

  • यह शास्त्रीय रंगमंच से भिन्न होते हुए लोक परंपराओं और क्षेत्रीय भाषाओं पर आधारित है।

. क्षेत्रीय रंगमंच के प्रमुख रूप

उत्तर भारत

  • रामलीला (उत्तर प्रदेश): रामायण पर आधारित, धार्मिक कथाओं का प्रदर्शन।

  • नौटंकी (उत्तर प्रदेश, राजस्थान): संगीत और संवादों पर आधारित।

  • भांड पाथेर (कश्मीर): व्यंग्य और नृत्य के माध्यम से सामाजिक समस्याओं का चित्रण।

पूर्वी भारत

  • जात्रा (पश्चिम बंगाल): पौराणिक और सामाजिक विषयों पर आधारित।

  • भाओना (असम): शंकरदेव द्वारा आरंभ, धार्मिक कथाओं पर आधारित।

  • चहऊ नृत्य-रंगमंच (ओडिशा, झारखंड): मुखौटों का उपयोग, नृत्य और नाटक का संगम।

दक्षिण भारत

  • कथाकली (केरल): महाकाव्य कथाओं पर आधारित नृत्य-नाट्य।

  • यक्षगान (कर्नाटक): पौराणिक कथाओं पर आधारित, संगीत और नृत्य का समावेश।

  • तेरु कोथु (तमिलनाडु): तमिल महाकाव्यों और धार्मिक कथाओं का प्रदर्शन।

पश्चिम भारत

  • तमाशा (महाराष्ट्र): हास्य, संगीत और नृत्य से भरपूर।

  • भवाई (गुजरात): सामाजिक और धार्मिक व्यंग्य।

  • गौंडल (गोवा): पौराणिक कथाओं और लोक गीतों का प्रदर्शन।

मध्य भारत

  • नाचा (छत्तीसगढ़): ग्रामीण विषयों और हास्य पर आधारित।

  • माच (मालवा, मध्य प्रदेश): लोक संगीत और नाटक का संयोजन।

क्षेत्रीय रंगमंच की विशेषताएँ

  1. स्थानीयता: स्थानीय भाषा, पहनावा और रीति-रिवाजों का उपयोग।

  2. सामाजिक जागरूकता: सामाजिक समस्याओं, व्यंग्य और धार्मिक शिक्षा का समावेश।

  3. सादगी और जीवंतता: मंचन में सादगी और सीधे जनता से संवाद।

  4. संगीत और नृत्य: क्षेत्रीय संगीत और पारंपरिक वाद्ययंत्रों का समावेश।

क्षेत्रीय रंगमंच का महत्त्व

  • संस्कृति का संरक्षण: क्षेत्रीय रंगमंच लोककथाओं और परंपराओं को संरक्षित करता है।

  • सामाजिक एकता: यह समुदायों को जोड़ता है और सामूहिकता की भावना पैदा करता है।

  • सामाजिक संदेश: नाटकों के माध्यम से सामाजिक और नैतिक संदेश।

  • ग्रामीण जीवन की अभिव्यक्ति: ग्रामीण जनजीवन और उनके संघर्षों को मंच पर प्रस्तुत करता है।

  • धार्मिक और पौराणिक महत्त्व: धर्म और पौराणिक कथाओं के प्रचार-प्रसार में भूमिका।

चुनौतियाँ और समाधान

चुनौतियाँ

  • आधुनिकीकरण और शहरीकरण: क्षेत्रीय रंगमंच का महत्व घट रहा है।

  • सिनेमा और डिजिटल मीडिया का प्रभाव: पारंपरिक रंगमंच की लोकप्रियता में कमी।

  • संसाधनों की कमी: आर्थिक और तकनीकी सीमाएँ।

  • कला का व्यावसायीकरण: मूल रूप का क्षरण।

समाधान

  • सरकार द्वारा संरक्षण और प्रोत्साहन।

  • रंगमंच को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करना।

  • शिक्षा और संस्कृति के पाठ्यक्रम में क्षेत्रीय रंगमंच को शामिल करना।

  • डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर प्रचार।


3.आधुनिक रंगमंच 

भारतीय थिएटर का वह चरण है, जो 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शुरू हुआ और 20वीं शताब्दी में विकसित होकर समकालीन रूप में आया। यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, उपनिवेशवाद और पश्चिमी रंगमंच से प्रेरित है।


1. आधुनिक रंगमंच का उदय

  • पारसी थियेटर (19वीं सदी): आधुनिक भारतीय रंगमंच का आरंभ पारसी थिएटर से हुआ। इसमें पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों को नाटकीय रूप में प्रस्तुत किया गया।

  • पश्चिमी प्रभाव: ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय थिएटर ने शेक्सपियर और ग्रीक नाटकों से प्रेरणा ली।

  • स्वतंत्रता आंदोलन: नाटक सामाजिक जागरूकता और राष्ट्रवाद का माध्यम बने।

  • नवजागरण काल: आधुनिक रंगमंच ने भारतीय समाज में प्रगतिशील सोच को प्रोत्साहित किया।

2. आधुनिक रंगमंच की विशेषताएँ

  1. यथार्थवाद और प्रगतिवाद: नाटकों में सामाजिक यथार्थ, आर्थिक असमानता, और वर्ग संघर्ष को दर्शाया गया।

  2. सामाजिक मुद्दे: बाल विवाह, जातिवाद, दहेज प्रथा, और महिलाओं की स्थिति जैसे मुद्दों को उठाया गया।

  3. शैली और तकनीक: पारंपरिक और पश्चिमी तकनीकों का मिश्रण।

  4. बहुभाषिकता: हिंदी, बंगाली, मराठी, गुजराती, और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में नाटक।

  5. प्रयोगात्मक रंगमंच: नाटक में नई अवधारणाएँ और शैलियाँ, जैसे प्रतीकवाद और एब्सर्ड थिएटर।

3. प्रमुख रंगमंचकार और उनके योगदान

बंगाली रंगमंच

  • गिरीश चंद्र घोष: आधुनिक रंगमंच के जनक, सामाजिक और पौराणिक नाटकों का निर्माण।

  • रवींद्रनाथ टैगोर: डाकघर, रक्तकरबी जैसे नाटक।

  • बादल सरकार: तीसरे रंगमंच के प्रवर्तक, जिन्होंने जनता से संवाद पर जोर दिया।

हिंदी रंगमंच

  • भारतेंदु हरिश्चंद्र: आधुनिक हिंदी रंगमंच के जनक, अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा जैसे नाटक।

  • जैनेन्द्र कुमार और मोहन राकेश: आधुनिक हिंदी नाटक में यथार्थवाद की शुरुआत।

    • मोहन राकेश: आषाढ़ का एक दिन, आधे अधूरे

मराठी रंगमंच

  • बाल गंगाधर तिलक: नाटक का उपयोग स्वतंत्रता आंदोलन के लिए किया।

  • विजय तेंदुलकर: घासीराम कोतवाल, शांतता! कोर्ट चालू आहे

अन्य प्रमुख योगदानकर्ता

  • हबीब तनवीर: लोक रंगमंच और आधुनिक नाट्य शैली का मिश्रण।

  • उत्पल दत्त: राजनीतिक और सामाजिक रंगमंच।

4. आधुनिक रंगमंच के रूप और प्रवृत्तियाँ

  1. पारसी थियेटर

    • भव्य मंच सज्जा और संगीत का समावेश।

    • दर्शकों के मनोरंजन पर केंद्रित।

  2. स्वतंत्रता पूर्व रंगमंच

    • नाटक राष्ट्रवादी चेतना और समाज सुधार के माध्यम बने।

    • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित नाटक।

  3. स्वतंत्रता पश्चात रंगमंच

    • शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और राजनीतिक परिवर्तन के मुद्दे।

    • यथार्थवादी और प्रतीकात्मक नाटकों का उदय।

  4. समकालीन रंगमंच

    • महिला अधिकार, पर्यावरण, एलजीबीटीक्यूIA+ मुद्दे जैसे समकालीन विषय।

    • मल्टीमीडिया और डिजिटल तकनीक का उपयोग।

5. आधुनिक रंगमंच की चुनौतियाँ

  1. आधुनिक मीडिया का प्रभाव: सिनेमा और डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से रंगमंच का दायरा सीमित हो गया।

  2. वित्तीय समस्याएँ: रंगमंच के लिए प्रायोजन और आर्थिक सहायता की कमी।

  3. पारंपरिक रंगमंच का संरक्षण: आधुनिकता के साथ पारंपरिक रंगमंच रूपों का विलुप्त होना।

  4. दर्शकों की कमी: युवाओं में रंगमंच के प्रति घटती रुचि।

6. समाधान और संरक्षण के प्रयास

  1. सरकारी पहल:

    • राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) और संगीत नाटक अकादमी जैसे संस्थान।

    • नाटक और रंगमंच को बढ़ावा देने के लिए अनुदान।

  2. शिक्षा और प्रशिक्षण: रंगमंच को स्कूल और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल करना।

  3. नए माध्यमों का उपयोग: डिजिटल थिएटर और लाइव स्ट्रीमिंग का उपयोग।

  4. सांस्कृतिक आदान-प्रदान: अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव।


निष्कर्ष

आधुनिक रंगमंच भारतीय समाज के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम रहा है। यह केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज सुधार, जागरूकता और रचनात्मकता का मंच है।


1.शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। नाट्यशास्त्र के संदर्भ में इसके प्रमुख तत्वों और सामाजिक प्रभावों पर चर्चा करें।(Classical Sanskrit theatre is an integral part of India’s cultural heritage. Discuss its key elements and social impact in the context of Natyashastra.)


2.भारतीय क्षेत्रीय रंगमंच की विविधता और विशिष्टता क्या है? क्षेत्रीय रंगमंच के प्रमुख रूपों और उनके समाज पर प्रभाव का विश्लेषण करें।


(What are the diversity and uniqueness of Indian regional theatre? Analyze the major forms of regional theatre and their impact on society.)


3.आधुनिक भारतीय रंगमंच के विकास में पारसी थिएटर और स्वतंत्रता आंदोलन की क्या भूमिका रही? इसके सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव का मूल्यांकन करें।


(What has been the role of Parsi Theatre and the freedom movement in the development of modern Indian theatre? Evaluate its social and cultural impact.


4.भारतीय रंगमंच (शास्त्रीय, क्षेत्रीय, और आधुनिक) ने सामाजिक बदलाव और जन-जागृति में क्या योगदान दिया है? उदाहरण सहित चर्चा करें।(How has Indian theatre (classical, regional, and modern) contributed to social change and mass awareness? Discuss with examples.)


5.आधुनिक युग में भारतीय रंगमंच किन प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा है? इसके संरक्षण और पुनरुत्थान के लिए आवश्यक उपाय सुझाएँ।


(What are the major challenges faced by Indian theatre in the modern era? Suggest measures for its preservation and revival.)




प्रश्न 1:निम्नलिखित में से कौन सा ग्रंथ शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच का आधारभूत ग्रंथ माना जाता है?

(A) अभिज्ञान शाकुंतलम्

(B) नाट्यशास्त्र

(C) महाभारत

(D) मृच्छकटिकम्

उत्तर: (B) नाट्यशास्त्र

प्रश्न 2:शास्त्रीय संस्कृत रंगमंच में "नवरस" किससे संबंधित हैं?

(A) मंच सज्जा

(B) दर्शकों की संख्या

(C) अभिनय में भावनाएँ

(D) संगीत वाद्ययंत्र

उत्तर: (C) अभिनय में भावनाएँ

प्रश्न 3:कालिदास की निम्नलिखित कृतियों में से कौन सी नाटक है?

(A) मेघदूतम्

(B) रघुवंशम्

(C) विक्रमोर्वशीयम्

(D) कुमारसंभवम्

उत्तर: (C) विक्रमोर्वशीयम्


प्रश्न 4:"जात्रा" किस राज्य से संबंधित एक प्रमुख क्षेत्रीय रंगमंच शैली है?

(A) ओडिशा

(B) पश्चिम बंगाल

(C) असम

(D) तमिलनाडु

उत्तर: (B) पश्चिम बंगाल

प्रश्न 5:निम्नलिखित में से कौन सी लोक रंगमंच शैली तमिलनाडु से संबंधित है?

(A) कथाकली

(B) तेरु कोथु

(C) नौटंकी

(D) यक्षगान

उत्तर: (B) तेरु कोथु

प्रश्न 6:छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोक रंगमंच कौन सा है?

(A) भवाई

(B) माच

(C) नाचा

(D) तमाशा

उत्तर: (C) नाचा


प्रश्न 7:भारत में "आधुनिक हिंदी रंगमंच" के जनक कौन माने जाते हैं?

(A) मोहन राकेश

(B) विजय तेंदुलकर

(C) भारतेंदु हरिश्चंद्र

(D) रवींद्रनाथ टैगोर

उत्तर: (C) भारतेंदु हरिश्चंद्र

प्रश्न 8:"घासीराम कोतवाल" नाटक किस प्रसिद्ध नाटककार द्वारा लिखा गया है?

(A) गिरीश कर्नाड

(B) विजय तेंदुलकर

(C) बादल सरकार

(D) हबीब तनवीर

उत्तर: (B) विजय तेंदुलकर

प्रश्न 9:"तीसरा रंगमंच" किस रंगमंच विचारक और लेखक से जुड़ा है?

(A) गिरीश कर्नाड

(B) हबीब तनवीर

(C) बादल सरकार

(D) उत्पल दत्त

उत्तर: (C) बादल सरकार


प्रश्न 10:राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) कहाँ स्थित है?

(A) मुंबई

(B) कोलकाता

(C) दिल्ली

(D) चेन्नई

उत्तर: (C) दिल्ली

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