भारतीय सविधान - ऐतिहासिक आधार
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- Nov 5, 2024
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रेगुलेटिंग एक्ट- 1773
रेगुलेटिंग एक्ट-1773 भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत में एक महत्वपूर्ण कानून था। इसे 10 जून 1773 को ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया था और इसका उद्देश्य भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों को नियंत्रित करना था ¹।
मुख्य प्रावधान:

इस एक्ट के ज़रिए कंपनी के राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों को मान्यता मिली.
इसने भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी.
इस एक्ट के तहत बंगाल के गवर्नर को 'बंगाल का गवर्नर-जनरल' बनाया गया.
इस एक्ट के तहत कलकत्ता (अब कोलकाता) में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई.
इस एक्ट के तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने या भारतीयों से रिश्वत लेने की अनुमति नहीं थी.
इस एक्ट के तहत कंपनी को भारत के राजस्व, नागरिक, और सैन्य मामलों की जानकारी देनी थी.
रेगुलेटिंग एक्ट, 1773 के बारे में कुछ और खास बातें:
इस एक्ट के तहत, ब्रिटिश सरकार ने कंपनी पर नियंत्रण कर लिया था.
इस एक्ट के तहत, कंपनी के कर्मचारियों के निजी व्यापार पर रोक लगा दी गई थी.
इस एक्ट के तहत, कंपनी के कर्मचारियों को भारतीयों से उपहार या रिश्वत लेने की अनुमति नहीं थी.
इस एक्ट के तहत, न्यायालय के निदेशक का कार्यकाल चार साल तक सीमित कर दिया गया था.
रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के दोष
☛ गवर्नर-जनरल के पास कोई वीटो शक्ति नहीं थी।
☛ इसमें उन भारतीय लोगों की चिंताओं का समाधान नहीं किया गया जो कंपनी को राजस्व दे रहे थे।
☛ इससे कंपनी अधिकारियों के बीच भ्रष्टाचार नहीं रुका।
☛ सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां सुस्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं थीं।
☛ कंपनी की गतिविधियों में संसदीय नियंत्रण की मांग अप्रभावी साबित हुई क्योंकि गवर्नर-जनरल द्वारा भेजी गई रिपोर्टों का अध्ययन करने के लिए कोई तंत्र नहीं था।
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